Monday, November 30, 2015

पृथ्वी के तापमान को काबू में रखना सबकी जिम्मेदारी

जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक सम्मेलन में शामिल होने के लिए पेरिस रवाना होने से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को इसके प्रभावों और पूरे विश्व की चिंताओं का जिक्र करते हुए कहा कि पृथ्वी के तापमान को नियंत्रण में रखना सबकी जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक आपदा और अन्य रूपों में इसके विनाशकारी प्रभावों से निपटने के लिए सरकारों और हर छोटी-बड़ी संस्थाओं को वैज्ञानिक तरीके से काम करना होगा। प्रधानमंत्री ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में कहा-पूरा विश्व जलवायु परिवर्तन से चिंतित है। जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग की डगर-डगर पर उसकी चर्चा भी है, चिंता भी है और हर काम को करने से पहले अब एक मानक के रूप में इसको स्वीकृति मिलती जा रही है। पृथ्वी का तापमान अब बढ़ना नहीं चाहिए। ये हर किसी की जिम्मेदारी भी है, चिंता भी है। और तापमान से बचने का एक सबसे पहला रास्ता है- ऊर्जा संरक्षण। उन्होंने कहा कि दुनिया के हर कोने से लगातार प्राकृतिक आपदा की खबरें आया करती हैं। न कभी सुना हो और न कभी सोचा हो, ऐसी प्राकृतिक आपदाओं की खबरें आती रहती हैं। प्रधानमंत्री ने कहा- जलवायु परिवर्तन का प्रभाव कितना तेजी से बढ़ रहा है यह अब हम लोग अनुभव कर रहे हैं। हमारे ही देश में, पिछले दिनों जिस प्रकार से अति वर्षा और वो भी बेमौसमी वर्षा हुई और लंबे अरसे तक वर्षा हुई, खासकर तमिलनाडु में जो नुकसान हुआ है, और अन्य राज्यों को भी इसका असर हुआ है। कई लोगों की जानें गईं। मोदी ने कहा कि जब से संकटों की बातें आई हैं तब हमें इससे निपटने में काफी बदलाव लाने की आवश्यकता हो गई है। जैविक खेती के महत्व को रेखांकित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि फसल के अवशेष भी बहुत कीमती और अपने आप में जैविक खाद होते हैं और ऐसे में खेतों में उन्हें आग लगाना ठीक नहीं है क्योंकि इससे जमीन की ऊपरी परत जल जाती है और पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचता है। प्रधानमंत्री के इस बयान को ऐसे समय में महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है जब कई रिपोर्टों में पंजाब में खेतों में फसलों के अवशेष को आग लगाने को दिल्ली और हरियाणा में प्रदूषण स्तर बढ़ने से जोड़ा गया है। मोदी ने कहा कि पूरे हिंदुस्तान में यह हम लोगों की आदत है और परंपरागत रूप से हम इसी प्रकार से अपनी फसल के अवशेषों को जलाने के रास्ते पर चल रहे हैं। एक तो पहले हमें इससे होने वाले नुकसान का अंदाजा नहीं था। सब करते हैं इसलिए हम करते हैं वो ही आदत थी। दूसरा, इसका उपाय क्या होता है उसका भी प्रशिक्षण नहीं था और उसके कारण ये चलता ही गया। प्रधानमंत्री ने कहा- आज जो जलवायु परिवर्तन का संकट है, उसमें वह जुड़ता गया। और जब इस संकट का प्रभाव शहरों की ओर आने लगा तब आवाज सुनाई देने लगी। हमें हमारे किसान भाई-बहनों को प्रशिक्षित करना पड़ेगा, उनको सत्य समझना पड़ेगा कि फसल के अवशेष जलाने से हो सकता है कि समय बचता होगा, मेहनत बचती होगी। अगली फसल के लिए खेत तैयार हो जाता होगा। लेकिन ये सच्चाई नहीं है। फसल के अवशेष भी बहुत कीमती होते हैं। वह अपने आप में जैविक खाद होता है। हम उसको बर्बाद करते हैं। 

जलवायु संकट से निपटने के लिए भारत ने मिलाया ब्रिटेन और आॅस्ट्रेलिया से हाथ 

विभिन्न देशों के एक समूह विशेष से जुड़ते हुए भारत ने कहा है कि वह राष्ट्रमंडल के तहत आने वाले कमजोर देशों को 25 लाख डॉलर उपलब्ध करवाएगा ताकि स्वच्छ ऊर्जा का इस्तेमाल शुरू करने में और ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम करने में उनकी मदद की जा सके। यह घोषणा राष्ट्रमंडल की द्विवार्षिक बैठक के दूसरे दिन की गई। इस समूह में ब्रिटेन, आॅस्ट्रेलिया, कनाडा, सिंगापुर जैसे ताकतवर देश और मालदीव, टोंगा और नौरू जैसे छोटे द्वीपीय देश शामिल हैं। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कहा, ‘भारत ने छोटे राष्ट्रमंडलीय देशों के व्यापार वित्त प्रतिष्ठान के लिए 25 लाख डॉलर की घोषणा की है। जैसा कि आप जानते हैं, राष्ट्रमंडल के 53 सदस्यों में 31 छोटे देश हैं और व्यापार वित्त उनके लिए महत्वपूर्ण हैं।’ यहां आयोजित हुई राष्ट्रमंडल सरकार प्रमुखों की 24वीं बैठक में जलवायु परिवर्तन से निपटने पर व्यापक चर्चा हुई और कई देशों ने पेरिस में शुरू होने जा रहे संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन से पहले कमजोर देशों को अपनी ओर से आर्थिक मदद देने का संकल्प लिया है। भारत लगातार इस बात पर जोर देता रहा है कि अमीर देशों को विकासशील देशों के साथ ‘जलवायु न्याय’ करना चाहिए। इसके साथ ही भारत जोर देता रहा है कि अमीर देशों की छोटे द्वीपों और गरीब देशों के प्रति प्रतिबद्धता मौजूदा स्तर से आगे जानी चाहिए। इस शिखर सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने किया। सम्मेलन में लगभग 30 देशों के राष्ट्र प्रमुखों और सरकार प्रमुखों ने शिरकत की। कनाडा, ब्रिटेन और आॅस्ट्रेलिया समेत कई देशों ने ग्लोबल वॉर्मिंग से लड़ने में गरीब देशों की मदद करने के लिए लगभग 2.5 अरब डॉलर देने का संकल्प लिया है। माल्टा के प्रधानमंत्री जोसेफ मस्कट ने इस गुट के गरीब देशों में पर्यावरणीय परियोजनाओं को मदद करने वाले एक अरब डॉलर के राष्ट्रमंडल हरित वित्त प्रतिष्ठान का अनावरण किया। इससे इतर, ब्रिटेन ने आपदा प्रबंधन के लिए 2.1 करोड़ पाउंड और समुद्र आधारित अर्थव्यवस्था के लिए 55 लाख पाउंड देने का वादा किया है। आॅस्ट्रेलिया ने एक नए राष्ट्रमंडलीय विचार- जलवायु वित्त पहुंच केंद्र के लिए 10 लाख डॉलर की प्रतिबद्धता जताई है। कनाडा ने ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने में गरीब देशों की मदद के लिए दो अरब डॉलर की सहायता देने का संकल्प लिया है। इससे पहले, राष्ट्रमंडल और भारत, माल्टा, मॉरिशस एवं श्रीलंका की सरकारों ने छोटे देशों में व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने के लिए नए व्यापार वित्त कोष की घोषणा की थी। ऐच्छिक कोष का उद्देश्य 2 करोड़ डॉलर की नव-उद्यम पूंजी आकर्षित करना है। यह कोष व्यापारिक चुनौतियों का सामना कर रहे सदस्य देशों को उनकी व्यापारिक क्षमता बढ़ाने के लिए जरूरी वित्त उपलब्ध करवाएगा। प्रधानमंत्री मस्कट ने कहा, ‘हम सहायकों के रूप में काम कर रहे हैं ताकि छोटे क्षेत्रों के छोटे व्यापारी नए बाजारों तक अपनी पहुंच बना सकें। हम अपने लिए और अन्य छोटे राष्ट्रमंडल देशों के लिए जरूरी व्यापार अवसंरचना को खड़ा करने के लिए बहुत उत्सुक हैं।’ इस कोष के जरिए सदस्य देशों में बड़े बैंकों के जरिए छोटे बैंकों को रिण देने की प्रक्रिया में तेजी लाने और जोखिम कम करने की कोशिश की जाएगी। वित्तीय निवेश उन सदस्य देशों और अन्य से लेने की कोशिश की जाएगी, जिन्होंने इस भागीदारी में रूचि दिखाई है। इस कोष का पहला चरण तीन साल तक चलेगा और इसके बाद समीक्षा होगी। 

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